धर्मशाला
हिमाचल प्रदेश विधानसभा में चौथे दिन विपक्ष ने सरकार के स्कूल बंद करने वाले मुद्दे पर वॉक आउट किया। मुख्यमंत्री चर्चा के दौरान बंद किए संस्थानों को ज़रूरत के अनुसार शुरू करने की बात कही। मुख्यमंत्री के उत्तर से असंतुष्ट विपक्ष ने वॉक आउट किया। उसका कहना था कि उसका मापदंड क्या है।
नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने इस संबंध में कहा, “आज प्रश्नकाल के दौरान सदस्य रणवीर शर्मा ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा। उन्होंने कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में संस्थान बंद करने, नए संस्थान खोलने और पुराने संस्थानों के बारे में जानकारी मांगी। उन्होंने पूछा था कि कांग्रेस सरकार ने जब से सत्ता संभाली है, तब से कितने संस्थानों को डिनोटिफाई किया गया है, कितने नए संस्थान खोले गए हैं और कितने संस्थानों को फिर से नोटिफाई किया गया है। इस प्रश्न के जवाब में पेश आंकड़े सही नहीं थे, क्योंकि उन्हें ठीक तरीके से प्रस्तुत नहीं किया गया था।”
जयराम ठाकुर ने कहा, “आज इस प्रश्न के माध्यम से हमें जो जानकारी मिली है, वह यह है कि हिमाचल प्रदेश में कुल 1865 संस्थानों को डिनोटिफाई किया गया है। इसके बाद सरकार ने 37 नए संस्थान खोले हैं और 103 संस्थानों को फिर से नोटिफाई किया है। यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि कांग्रेस सरकार ने कुछ संस्थानों को बंद किया है, जबकि कुछ नए संस्थान खोले भी हैं और कुछ पुराने संस्थानों को फिर से सक्रिय किया है।”
उन्होंने कहा, “जब यह जानकारी सदन में प्रस्तुत की गई, तो सवाल यह उठता है कि संस्थान बंद करने का पैरामीटर क्या है और नए संस्थान खोलने के लिए क्या मापदंड हैं। र मुख्यमंत्री से बार-बार यह सवाल पूछा गया, लेकिन उनका जवाब था कि यह “नीड बेस्ड” है। यह जवाब सुनकर पहला सवाल यह उभरा कि हिमाचल प्रदेश में “नीड बेस्ड” की आवश्यकता का आकलन कब शुरू किया गया था। मुख्यमंत्री ने कहा कि 11 दिसंबर को उन्होंने शपथ ली थी, और 12 दिसंबर को ही सभी संस्थान बंद करने का आदेश दे दिया था। इसका मतलब यह हुआ कि बिना कोई ठोस योजना या आकलन किए कांग्रेस सरकार ने 1 अप्रैल के बाद खोले गए सभी संस्थानों को बंद कर दिया था। इन संस्थानों के लिए बजट प्रावधान पहले से किया गया था, लेकिन फिर भी उन्हें बंद कर दिया गया।”
उन्होंने कहा, “यह भी ध्यान देने वाली बात है कि “नीड बेस्ड” आकलन का कोई ठोस आधार नहीं था, क्योंकि 11 दिसंबर को सरकार बनने के बाद और 12 दिसंबर को सभी संस्थानों को बंद करने का निर्णय लिया गया था। इस संदर्भ में कहा जा सकता है कि यह फैसला राजनीतिक दृष्टिकोण से लिया गया था। यह भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा खोले गए संस्थानों को बंद करने का स्पष्ट संकेत है।”